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2021 में हरिद्वार में कुंभ मेले का आयोजन

हिन्दु धर्म में त्यौहारों के साथ किसी न किसी पौराणिक कथा का जुड़ा होना स्वाभाविक है। हमारे पौराणिक ग्रंथों में मकर सक्र्रांति से लेकर छठ पूजा तक प्रत्येक त्यौहार के पीछे कोई न कोई पौराणिक कथा छुपी होती है। हिन्दु पौराणिक कथाओं के अनुसार कुंभ मेला भी एक महत्वपूर्ण और पौराणिक त्यौहार है।  इसकी भव्यता इतनी विशाल होती है कि लोगों की भीड़ अंतरिक्ष से भी देखी जा सकती है। यह आस्था का सबसे बड़ा जमावड़ा है। जिसके साक्षी बनने के लिए दुनिया भर से लोग इसमें शामिल होने आते हैं। बारह साल के दौरान चार बार इसका आयोजन किया जाता है। हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और इलाहाबाद इन चार तीर्थ स्थानों पर इसका भव्य आयोजन किया जाता है। अलग अलग नदियों के संगम पर दुनिया भर के श्रृदालु इस आस्था के कुंभ में डुबकी लगाने आते है। जहां उत्तराखंड के हरिद्वार में गंगा नदी, मध्यप्रदेश के उज्जैन में शिप्रा नदी, उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम तथा अंत में महाराष्ट्र के नासिक में गोदावरी नदी के तट पर इस मेले का आयोजन किया जाता है। दुनिया के सबसे बड़े मानवता के इस जमावड़े में दुनिया भर के श्रद्धालु, तपस्वी, अखाड़े, साध्वियां, तीर्थयात्री इन पवित्र नदियों में स्नान करने आते हैं। 48 दिनों तक चलने वाले इस आयोजन को बड़े स्तर पर आयोजित किया जाता है।

कुंभ मेले को यदि परिभाषित किया जाए तो कुंभ यानी अमृत जिसे पाने के लिए देवता और राक्षसों ने समुद्र मंथन किया। वहीं मेला जिसे सभा या ऐसी जगह के रूप में चित्रित किया गया जहां लोगों की भीड़ जुटती हो।  पौराणिक कथाओं में यह वर्णित किया गया जब समुद्र मंथन हुआ तो क्यांकि इसे अकेले नहीं किया जा सकता था इसलिए इसे देवताओं तथा राक्षसों दोनों के द्वारा मिलकर किया गया। समुद्र मंथन का उल्लेख पुराण, महाभारत, और रामायण जैसे प्रसिद्ध गं्रथों में भी किया गया है। अमृत की लालसा में दुध सागर के तट पर यह मंथन किया जिसके मंथन के पश्चात एक घातक विष उत्पन्न हुआ। जैसा पौराणिक कथाओं में वर्णित है इस विष से संसार को सुरक्षित रखने के लिए स्वंय भगवान शिव ने इसको अपने कंठ में धारण किया जिसके कारण उनका नाम नीलकंठ पड़ा। कई सालों के बाद धनंवतरी अपने हाथों में अमृत का घड़ा लेकर प्रकट हुए। परन्तु देवताओं ने इस अमृत को राक्षसों से बचाने के लिए चार देवताओं सूर्य, शनि, ब्रहस्पति और चन्द्र की निगरानी में छुपा दिया। बाद में इनका पीछा करते हुए जब राक्षस उन्हें खोज रहें तो इसके बचाव के चलते इसकी चार बूंदे हरिद्वार, उज्जैन, नासिक तथा प्रयागराज में गिरी। तब से इन्हें अलौकिक मानते हुए इसे रहस्यमयी शक्तियों से परिपूर्ण माना गया। बारह दिनों अमृत की लालसा में देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध छिड़ा। जो पृथ्वी पर बारह सालों के बराबर माना गया। इन्ही बारह सालों की अवधि में ऐसा माना जाता है कि यह नदियां अमृत में बदल जाती है। इसलिए बारह वर्षा के दौरान कुंभ मेलें में इस दिव्य शक्ति का बोध करने तथा पवित्रता और अमरता के सार में स्नान करने के लिए करोड़ो की संख्या में श्रद्धालु आते है।

कुंभ मेले को महाकुंभ, पूर्ण कुभ, अर्धकुंभ, तथा कुंभ मेला इन चार रूपों में आयोजित किया जाता है। पूर्ण कुंभ मेले का आयोजन बारह वर्षो के अंतराल में हरिद्वार, उज्जेन, नासिक और प्रयागराज में से किसी एक में बारी बारी से आयोजित किया जाता है। जिसे पूर्ण कुंभ भी कहा जाता है। महाकुंभ का आयोजन प्रयागराज में बारह वर्षो की अवधि के दौरान ही किया जाता है। यह प्रत्येक बारह पूर्ण कुंभ मेलों के बाद आयोजित किया जाता है। अर्धकुंभ का आयोजन छह सालों की अवधि के दौरान इन चारों स्थानों में बारी बारी से आयोजित किया जाता है। जिसमें लाखों की संख्या में लोग उत्साह के साथ शामिल होते है। माघ कुंभ मेले का आयोजन प्रतिवर्ष माघ के महीने प्रयागराज में किया जाता है। सूर्य, चन्द्रमा और बृहस्पति की स्थिति को ध्यान में रखकर इस मेले का आयोजन किया जाता है।

इस साल महाशिवरात्रि के अवसर पर हरिद्वार कुंभ मेले का आयोजन की शुरूआत होगी तथा पहला शाही स्नान किया जाएगा इसके अलावा दूसरा शाही स्नान 12 अप्रैल को सोमवती अमावस्या, तीसरा 14 अप्रैल को वैशाखी और मेष सक्र्रांति तथा चौथा एंव अंतिम 24 अप्रैल को चैत्र पूर्णिमा के दिन आयोजित किया जाएगा। जिसमें सभी 23 अखाड़ें पूर्ण श्रद्धा और आस्था के साथ भाग लेंगे। कुंभ मेले में पहले स्नान का नेतृत्व संतो के द्वारा किया जाता है। संतों के शाही स्नान के बाद आम लोगों को पवित्र नदी में स्नान करने की अनुमति दी जाती है। कुंभ मेले की भव्यता को प्रवचन, कीर्तन, तथा महाप्रसाद के द्वारा और भी भव्य बनाया जाता है। प्रयागराज में आयेजित किया जाने वाले कुंभ मेले को काफी प्राचीन होने की संज्ञा दी गई है। यूनेस्कों ने इसे ‘मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत’ की संज्ञा दी है। आस्था और विश्वास का यह संगम अपनी इसी दिव्यता और भव्यता के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है।

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