अंतरिक्ष प्रोद्योगिकी यानी स्पेस टेक्नॉलाजि अंतरिक्ष विज्ञान या अंतरिक्ष अन्वेषण जैसे उददेश्यों के लिए अंतरिक्ष विज्ञान में उपयोग के लिए विकसित की गई है। इस टेक्नॉलाजि में अंतरिक्ष यान, उपग्रह, अंतरिक्ष स्टेशन और इसमें लगने वाले बुनियादी ढांचे के उपकरण और प्रक्रियाएं और अंतरिक्ष युद्ध शामिल हैं। अंतरिक्ष के रहस्यों को जानने और उस पर काम करने के लिए नई नई तकनीक और उपकरणों की आवश्यकता और खोज हमेशा होती रही है। प्राकृतिक रूप से होने वाली घटनांए, चक्रवाती तूफान, मौसम की भविष्यवाणी, रिमोट सेंसिंग, जीपीएस सिस्टम, सैटेलाइट टेलीविजन और कुछ लंबी दूरी तक सम्पर्क साधने वाली संचार प्रणाली जैसी कई सामान्य रोजमर्रा की सेवाएं पूर्णता अंतरिक्ष में उपस्थित सैटेलाइट और अंतरिक्ष के बुनियादी ढांचे पर निर्भर करती हैं। विज्ञान, खगोल विज्ञान और पृथ्वी विज्ञान को इसी टेक्नॉलाजि के सहारे बड़ी सफलताएं भी मिली है। सबसे ज्यादा फायदा मौसम संबधी जानकारी और उन आपदाओें से मिला जो भीषण रूप में तबाही मचा चुकी है। पर पूर्व जानकारी के चलते इनसे ख्ुद को पूरी तरह सुरक्षित रखने में हम कामयाब रहे।
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4 अक्टूबर 1957 को सोवियत संघ द्वारा विश्व का पहला उपग्रह ‘स्पुतनिक’ अंतरिक्ष में भेजा गया। इसका वजन 83 किलोग्राम था और माना जाता है कि यह 250 किमी की ऊचांई पर पृथ्वी की परिक्रमा करता है। इसमें दो रेडियो ट्रांसमीटर थे, जो ‘‘बीप्स’’ का उत्सर्जन करते थे जिसे दुनिया भर के रेडियों द्वारा सुना जा सकता था। इसी बीप की अवधि के जरिए तापमान और दबाव डेटा को एन्केड किया गया था। सोवियत संघ यहीं नहीं रूका इसके बाद अप्रैल 1961 में वोस्तोक 1 नामक अंतरिक्ष यान द्वारा प्रथम अंतरिक्ष यात्री यूरी गगारिन को अंतरिक्ष में भेजा गया। ये पूरा मिशन स्वचालित प्रणालियों या भू नियंत्रण के द्वारा अंजाम दिया गया। इसके बाद अंतरिक्ष का यह सफर चन्द्रमा तक जा पहुंचा। तथा अन्य ग्रहों पर अलग अलग देशों ने उनके रहस्य को जानने के लिए अपने अपने सैटेलाइट भेजना शुरू किया। जिसमें कुछ सफल रहे और कुछ अब भी प्रयास में लगे हुए है।
चन्द्रमा पहला कृत्रिम उपग्रह लूना 1 1959 में भेजी गई जो हेजीओस्टिक कक्षा तक पहुंचने में कामयाब रही। 14 सितंबर 1959 को चंन्द्रमा की सतह पर पहुंचने की पहली कामयाबी हासिल की सोवियत संघ द्वारा भेजे गए प्रोब लूना 2 ने। चन्द्रमा की सबसे दूर की तस्वीर पहली बार 7 अक्टूबर 1959 को सोवियत जांच लूना 3 द्वारा ली गई थी। वही फै्रंक बोरमैन, जेम्स लवेल और विलियम एंडर्स ने 24 दिसंबर 1968 को अपोलो 8 यान में चांद की कक्षा में पहली बार प्रवेश किया। वही 20 जूलाई 1969 को नील आर्मस्ट्रांग द्वारा पहली बार चांद पर मानव का पहला कदम रखा गया।
चंद्रमा पर उतरने वाला पहला रोबोट रहा लूनर रोवर जो 17 नवंबर 1970 को सोवियत संघ द्वारा भेजा गया। यह सोवियत पोत लूनोखोद 1, लूनोखोद कार्यक्रम के हिस्से के रूप में भेजा गया था। चंद्रमा पर खडे़ होने वाला अंतिम मानव यूजीन सेरनन रहे जो अपोलो 17 मिशन का हिस्सा थे। 25 अगस्त 2012 को हमारे सौर मंडल को इंटरस्टेलर स्पेस में छोड़ने वाली पहली कृत्रिम वस्तु बनी वायजेर 1 जो 1 जनवरी 2019 तक पृथ्वी से लगभग 13.489 बिलियन दूरी पर स्थित है।
वर्तमान मे पृथ्वी पर परिक्रमा कर रहे ग्रहों की संख्या 1,950 है। और बहुत जल्द ही इनमें इजाफा होने की पूरी संभावनाए है। अब अपनी आपसी सुरक्षा को लेकर कई देश अंतरिक्ष में अपनी ताकत दिखाने की भरपूर कोशिश करते नजर आते है। कम लागत और बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने इन उपग्रहों की बढ़ती संख्या को पृथ्वी की कक्षा तक पहुंचते देखा है। पर इसके अतिरिक्त अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन जैसे सहयोगों ने ब्रहांड के बारे में ज्ञान की सीमाओं को आगे बढ़ाने के लिए कई देशों को एक साथ लाकर खड़ा किया है। इसी का नतीजा है कि नए नए प्रयोंगो के चलते नई नइ्र्र तकनीक का विकास तेजी से हो रहा है। अमेरिका, चाइना, भारत, रूस जैसे कई अन्य देश इस रेस में कई आगे निकल गए है। जहां भारत पर अपने पहले ही प्रयास में मंगल ग्रह तक पहुंचने में कामयाब रहा। सेटेलाइटस की बात की जाए तो संयुक्त राष्ट्र अमेरिका 830 सैटेलाइट के साथ पहले स्थान पर है तो वही चीन 280 के साथ दूसरे और रूस की 147 सैटेलाइट पृथ्वी की कक्षा
में मौजूद है। इसी के साथ बाहरी अंतरिक्ष गतिविधियों की लम्बे समय तक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ अंतरिक्ष में तकनीक के शांतिपूर्ण उपयोग पर बेहतर दिशानिर्देशों को बनाने का काम कर रही है।
अंतरिक्ष के कई ऐसे रहस्य आज भी मौजूद है जिनको समझने और खोजने में अभी हमें और समय लगने वाला है। अंतरिक्ष एक काफी पुर्वानुमानित वातावरण है लेकिन अभी भी आकस्मिक अवसादन और उपकरणों की संभावित विफलता के जोखिम इसमें बने हुए है। इसी का परिणाम रहा है कि 2004 में अंतरिक्ष सुरक्षा में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और वैज्ञानिक प्र्रगति को आगे बढ़ाने के लिए नीदरलैंड में स्पेस सेफटी की उन्नति के लिए इंटरनेशनल एसोसिएशन की स्थापना की गई थी।
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