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ये है दुनिया के सबसे खतरनाक 5 जनजातियाँ

World most dangerous Tribal

विश्व के देश आज डिजिटल दुनिया की और आगे बढ़ रहे है। इतना ही नहीं अन्य ग्रहों में जीवन तलाशते हमारे वैज्ञानिक वहां भी इंसानों को बसाने की तैयारी कर रहें है। हम आज विकसित और विकासशील देशों की दौड़ में आकर खड़े है। जिसके चलते विकास के नया आयाम विश्व स्तर पर विकसित किए जा रहें है। चाहें वो टैक्ॅनालिजी के मामलें में हो या डिजिटल दुनिया में बढ़ते हमारे नए-नए प्रयोग। मोबाइल फोन्स, लैपटॉप, टीवी, आदि चीजें हमारी रोजमर्रा के जीवन का अहम हिस्सा बन चुकी है। वहीं दूसरी तरफ शिक्षा हमारे भविष्य की नई राहें तय करती है। बदलते वक्त के साथ धीरे धीरे हमने नए नए आविष्कार कर इस मंजिल को तय किया है। अपनी रोजमर्रा की जिन्दगी को आसान बनाने के लिए अपनी आवश्यकताओं को आविष्कार में बदलने का प्रयास शुरू किया। इसी का नतीजा ही तो है कि बटन दबाते ही रोशनी से घर जगमगा जाता है। घंटो के सफर को मिनटों का कर दिया। पर आज भी विश्व में ऐसे कई जनजातियां मौजूद है जो इन सबसे दूर एक अलग जीवन जीना पंसद करती है जिन्हें हमारी दुनिया से जुड़ा होना बिल्कुल पंसद नहीं आता। बाहरी दुनिया से संपर्क न रखकर ये जनजातियां आदिमानव की तरह जीना पंसद करती है जिनके अपने रीतिरिवाज होते है।ज्यादातर वो लोग या तो जंगलों या अपनी बसाई हुई जगहों पर रहना ज्यादा पंसद करते हैं। विश्व की ऐसी जनजातिंया अफ्रीका, भारत आदि कई देशों में पाई जाती है, ऐसी ही खतरनाक जनजाजियों के कुछ नाम है-

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1.मुर्सी जनजाति – सूडान बॉर्डर और दक्षिण इथोपिया के पास पाए जाने वाली यह जनजाति विश्व में सबसे खतरनाक मानी जाती है। ये बाहरी दुनिया से संपर्क रखना पंसद नहीं करते और अगर हम इनकी दुनिया में दखल दे तो मौत निश्चित है। ये जनजाति बंदूक या अन्य हथियार रखने की शौकीन है जिसके लिए ये जंगली जानवरों को बेचकर अपना शौक पूरा करती है। अपने आप को ताकतवर बनाने और बेहतर स्वास्थ के लिए ये लोग गाय का खून पीना पंसद करते हे। इनकी मान्यता है कि इससे इन्हें ताकत मिलती है और साथ ही कबीलें में अधिक सम्मान के साथ जी सकते हैं।यहां औरतों के होंठों के निचले हिस्से में लकड़ी या मिटटी की डिस्क पहनाई जाती है। 15 साल की उम्र की लड़कियों के होंठो के निचले हिस्से को कटवा दिया जाता है। इनमें से कुछ इनके रीति रिवाज का हिस्सा होता है तो कुछ महिला सुरक्षा को लेकर इनकी तरफ से किए गए प्रयास।

2.सेंटिनेलिस जनजाति – भारत के अंडमान द्वीप समूह में निवास करने वाली यह जनजाति काफी खतरनाक है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता हे कि इस जनजाति के लोगो का रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाज आदि से जुड़ी कोई भी जानकारी हमारे पास उपलब्ध नहीं है। जो भी सेंटीनल आइलैंड के समीप गया उसे इस जनजाति के लोगों ने मौत के घाट उतार दिया। भारत सरकार ने भी इसे प्रतिबंधित कर रखा है।इस जनजाति ने आधुनिक सभ्यता को पूरी तरह से नकार दिया है वहां के लोग पूरी तरह से जंगली शिकार, फल आदि पर अपना जीवन बसर करते है। ये जनजाति तीरों, पत्थरों और आग का इस्तेमाल अपने बचाव के लिए करती है। ऐसा अनुमान है कि ये जनजाति करीब 60000हजार सालों से यहां निवास कर रही है। अंग्रेजी शासन के समय में भी इसी कारण यहां कब्जा नहीं किया जा सका।

3.मास्टोपेरो जनजाति – अमेजन के जंगलों में निवास करने वाली इस जनजाति को कोहेनारो भी कहा जाता है। शुरूआती समय में इस जनजाति का बाहरी दुनिया के साथ केई भी सम्बंध नही था।ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि इस जनजाति में 100 से 150 लेगों की आबादी निवास करती है। पेरू की सरकार ने इस जनजाति के साथ किसी भी प्रकार का कोई सम्बंध स्थापित करना पूरी तरह से निषिद्ध घोषित कर दिया है। सरकार की तरफ से किए गए यह प्रयास इस जनजाति को बाहरी दुनिया के रोगों से सुरक्षित रखने के लिए किए गए है। क्योंकि इस जनजाति के लोगों का इम्यून सिस्टम इन बीमारियों को झेलने के लिए तैयार नहीं है। यह जनजाति शिकार कर अपना गुजर बसर करती है साथ ही पेड़ की पत्तियों से अपने घरों का या झोपड़ो का निर्माण करती है।

4. कोरोवाइ जनजाति – इस जनजाति को कोलूफो भी कहा जाता है ये जनजाति इंडोनेशिया के साउथ ईस्टर्न वेस्ट पपुआ में निवास करती है। 1974 में खोजी गई इस जनजाति की आबादी 3000 के करीब है जो पेड़ों पर घर बनाकर रहती है। यह जनजाति अपना गुजर बसर शिकार कर और आस पास के प्राकृतिक संसाधनों के सहारे करती है। ये जनजाति भी घने जंगलों में निवास करती है।

5.कोरूबो जनजाति – पश्चिमी एमेजन बेसिन में निवास करने वाली यह जनजाति मुख्यतः ब्राजील से संबध रखती है। यह जनजाति बाहरी दुनिया से सम्पर्क रखने के लिए तैयार दिखाई देती है। इसकी आबादी अन्य जनजातियों के तरह नहीं है। इनके आहार में जंगली जानवर एंव फल शामिल है। हालांकि यह जनजाति कृषि की भी कुछ जानकारी रखती है। साथ ही इनमें शिशु हत्या का भी प्रचलन है पर इस जनजाति के कोई खास रीति-रिवाज या परम्परांए नहीं है।

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